Book Title: Jain Yogki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati Prakashan

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Page 374
________________ वर्तमान क्षण की प्रेक्षा ( १ ) शरीर-दर्शन की प्रक्रिया अंतर्मुख होने की प्रक्रिया है । सामान्यतः बाहर की ओर प्रवाहित होने वाली चैतन्य की धारा को अंतर् की ओर प्रवाहित करने का प्रथम साधन स्थूल शरीर है। इस स्थूल शरीर के भीतर तैजस और कर्म - ये दो सूक्ष्म शरीर हैं। उनके भीतर आत्मा है। स्थूल शरीर की क्रियाओं और संवेदनों को देखने का अभ्यास करने वाला क्रमशः तैजस् और कर्म - शरीर को देखने लग जाता है। शरीर - दर्शन का दृढ़ अभ्यास और मन के सुशिक्षित होने पर शरीर में प्रवाहित होने वाली चैतन्य की धारा का साक्षात्कार होने लग जाता है। जैसेजैसे साधक स्थूल से सूक्ष्म दर्शन करने की ओर आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे उसका अप्रमाद बढ़ता १३ दिसम्बर २००६ ३७३ -

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