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कलकल
कल कल कल कल कल
कल कालि कलाकारक
कारुण्य भावना सव्वेसिं जीवियं पियं। प्रत्येक प्राणी को जीवन प्रिय है। सव्वे जीवा वि इच्छंति जीविउं न मरिज्जिऊं। सब जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई भी नहीं चाहता। सव्वे पाणा पियाउया। सब जीवों को सुख प्रिय है और दुःख अप्रिय।
उक्त मानसिकता की स्थिति में सबके हितचिंतन का नाम है-करुणा, कारुण्य भावना।
दीनेष्वार्तेषु भीतेषु याचमानेषु जीवितम्। प्रतीकारपरा बुद्धिः कारुण्यमभिधीयते॥
योगशास्त्र ४.१२०
१८ जून २००६