Book Title: Jain Yogki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati Prakashan

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Page 383
________________ ཚུ་ག་ཙམཚོ་རྒྱཚེ་ཏཚུ་ཅཚེ་ཚེ་རྒྱམ་བྱའི་རྒྱན་དུ་བཞུགས་པ་ཚོ་ནས་རྒྱ་ན विचार प्रेक्षा १. अपने ज्ञाता-द्रष्टारूप का अनुभव करें, जो स्मृति, कल्पना और विचार से भिन्न है। ____२. चित्त को द्रष्टा के रूप में सिर पर केन्द्रित करें। विचार-तरंग उठे, उसे देखते जाएं, विचारों को रोकने का प्रयत्न न करें। ३. विचारों को देखें, विचार के उद्गम-स्रोत को देखें। ४. विचारों को पढ़ें, विचारों के साथ बहें नहीं, उन्हें देखें। ५. विचार-प्रवाह शांत हो तब शांत रहें। २२ दिसम्बर २००६ FARIDGE-PAPER-3८२ - REPSC PAPER

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