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शुक्लध्यान
धर्म्यध्यान से अगला चरण है शुक्ल ध्यान । जैसे मैल के दूर हो जाने पर वस्त्र शुक्ल हो जाता है, वैसे ही कषाय मल से रहित आत्मा का अपने शुद्ध स्वभाव में होने वाला परिणमन भी शुद्ध है।
शुक्लध्यान में शुद्ध आत्मा का ध्यान मुख्य होता है। यह निर्मल और निष्प्रकंप अवस्था है। इसकी योग्यता कषायरज के उपशम अथवा क्षय से प्राप्त होती है।
शुचिगुण - योगाच्छुक्लं कषायरजसः क्षयादुपशमाद्वा । माणिक्य-शिखा- वदिदं सुनिर्मलं
निष्प्रकम्पं च ॥
तत्त्वानुशासन २२२
२१ सितम्बर
२००६
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