Book Title: Jain Yogki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati Prakashan

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Page 354
________________ मनोविजय का उपाय जिस योग में औदासीन्य की गहराई, प्रयत्न की वर्जना और परम आनंद की भावना होती है, वह अपने मन का कहीं भी नियोजन नहीं करता। आत्मा के द्वारा जब मन की उपेक्षा होती है तब वह इन्द्रियों को विषयों में प्रेरित नहीं करता। इन्द्रियां भी मन की प्रेरणा के बिना अपने विषय में प्रेरित नहीं होतीं। आत्मा मन को प्रेरित नहीं करती और मन इन्द्रियों को प्रेरित नहीं करता। इस प्रकार दोनों ओर से आश्रयरहित बना हुआ मन अपने आप ही शांत हो जाता है। औदासीन्यनिमग्नः प्रयत्नपरिवर्जितः सततमात्मा। भावितपरमानन्दः क्वचिदति न मनो नियोजयति॥ करणानि नाधितिष्ठन्त्युपेक्षितं चित्तमात्मना जातु। ग्राह्ये ततो निज-निजे, करणान्यपि न प्रवर्तन्ते।। नात्मा प्रेरयति मनो, न मनः प्रेरयति यर्हि करणानि। उभयभ्रष्टं तर्हि, स्वयमेव विनाशमाप्नोति।। योगशास्त्र १२.३३-३५ २३ नवम्बर २००६

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