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एक
एकल कवि की कल कल
विकास का कल काल कब
स्वसंवेदन (५) एकाग्रता का प्रश्न एक जटिल समस्या है। बहुत लोग मन को एकाग्र करने का प्रयत्न करते हैं किन्तु वह किसी एक बिन्दु पर टिकता नहीं है। एकाग्रता के लिए श्वासदर्शन का आलंबन लिया जाता है। फिर भी निर्विचार अथवा निर्विकल्प की अवस्था निर्मित नहीं हो पाती। स्वसंवित्ति अथवा समाधि की अवस्था में आत्मानुभव होता है। उस समय परम एकाग्रता की स्थिति बन जाती है। जब योगी आत्मानुभव करता है उस समय बाह्य पदार्थों की उपस्थिति में भी उन पदार्थों का अनुभव नहीं होता, केवल स्वरूप का ही अनुभव होता है।
यथा निर्वात-देशस्थः प्रदीपो न प्रकम्पते। तथा स्वरूपनिष्ठोऽयं योगी नैकाग्र्यमुज्झति।। तदा च परमैकाग्र्याबहिरर्थेषु सत्स्वपि। अन्यत्र किंचणाऽऽभाति स्वमेवात्मनि पश्यतः ।।
तत्त्वानुशासन १७१,१७२
१८ अगस्त २००६