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भोगोपभोग परिमाण व्रत
उपभोग- परिभोग परिमाण व्रत ढाई हजार वर्ष पहले संयम की साधना का व्रत था । वर्तमान में यह समस्या का समाधान भी है। आबादी अधिक और उपभोग - सामग्री कम। कुछ शक्तिशाली व्यक्ति और राष्ट्र उपभोग-सामग्री का अधिक उपयोग करते हैं। असंख्य लोग उससे वंचित रह जाते हैं।
आत्मशोधन की दृष्टि से इसका आध्यात्मिक मूल्य है । सृष्टि संतुलन की दृष्टि से इस व्रत का सामाजिक मूल्य भी है।
१६ अप्रैल
२००६
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