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योग-प्रतिसंलीनता (२) ध्यान की प्रारंभिक अवस्था में अकुशल योग का निरोध और कुशल योग की उदीरणा का क्रम चलता रहता है, ये दोनों प्रतिसंलीनता के अंग हैं।
मनयोग प्रतिसंलीनता के दो प्रकार हैं१. अकुशलमन निरोध २. कुशलमन उदीरणा वचनयोग प्रतिसंलीनता के दो प्रकार हैं१. अकुशलवचन निरोध २. कुशलवचन उदीरणा शरीर और इन्द्रियों को कछुए की भांति गुप्त कर रहना।
मणजोगपडिसंलीणया-अकुसलमणणिरोहो वा, कुसल मणउदीरणं वा।
वइजोगपडिसंलीणया-अकुसलवइणिरोहो वा, कुसलवइउदीरणं वा।
कायजोगपडिसलीणया-जण्णं सुसमाहियपाणिपाए कुम्मो इव गुत्तिदिए सव्वगायपडिसंलीणे चिट्ठइ।
ओवाइयं ३७
२५ मई २००६