Book Title: Jain Yogki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati Prakashan

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Page 376
________________ चैतन्य केन्द्र (१) जो दृश्य है वह स्थूल शरीर है। इसके भीतर तैजस और कर्म ये दो सूक्ष्म शरीर हैं। उनके भीतर आत्मा है। वह चैतन्यमय है। जैसे सूर्य और हमारे मध्य बादल आ जाते हैं, वैसे ही आत्मा के चैतन्य और बाह्य जगत् के मध्य कर्मशरीर के बादल छाए हुए हैं। इसीलिए चैतन्य-सूर्य का पूर्ण प्रकाश बाह्य जगत् पर नहीं पड़ता। उसकी कुछ रश्मियां बाह्य जगत् को प्रकाशित करती हैं। कर्म शरीरगत ज्ञानावरण की क्षमता जितनी विलीन होती है उतने ही स्थूल शरीर प्रज्ञान की अभिव्यक्ति के केन्द्र निर्मित हो जाते हैं। ये ही हमारे चैतन्य केन्द्र हैं। १५ दिसम्बर २००६ FADARADABADGADGADAD३७५/ -DGDCADGADADAR...

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