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प्रतिसंलीनता (१)
मुक्ति की साधना के लिए मन को निश्चल करना आवश्यक है। इन्द्रियां अपने विषयों में प्रवृत्त रहती हैं और मन का उसमें काफी योग होता है। इस स्थिति में मन चंचल रहता है। मन को निश्चल बनाने के लिए आवश्यक है इन्द्रियों की विषयों से प्रतिसंलीनता (प्रत्याहार) । इन्द्रियों की विषयों से समाहृति होती है, उस अवस्था में मन निश्चल हो जाता है।
Gand Generat
इन्द्रियैः सममाकृष्य, विषयेभ्यः प्रशान्तधीः । धर्मध्यानकृते तस्मात् मनः कुर्वीत निश्चलम् ॥ योगशास्त्र ६.६
१६ मई
२००६
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