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मिथ्यात्व साधना का पहला बाधक तत्त्व है मिथ्यात्व। ज्ञान आवृत्त होने पर मनुष्य जान नहीं पाता। नहीं जानना अज्ञान है। दृष्टि मूढ़ होने पर मनुष्य जानता हुआ भी सम्यक् नहीं जानता, विपरीत जानता है। यह मिथ्यात्व है।
इस अवस्था में इंद्रिय-विषयों के प्रति तीव्रतम आसक्ति रहती है। क्रोध, मान, माया और लोभ प्रबलतम होते हैं।
मिथ्यात्वी मनुष्य अशाश्वत विषयों को शाश्वत मानकर चलता है। उसमें असत्य का आग्रह और धन के. प्रति तीव्रतम मूर्छा होती है।
२७ मार्च २००६