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ध्यान की सामग्री (२) आर्त और रौद्रध्यान अप्रशस्त ध्यान हैं। ये आत्मसाधना में बाधक हैं। धर्म्यध्यान और शुक्लध्यान, ये दोनों प्रशस्त ध्यान हैं। ये आत्म-साधना में साधक हैं। साधक को पहले धर्म्यध्यान का अभ्यास करना चाहिए। उसका अभ्यास परिपक्व होने पर उसे शुक्लध्यान की स्थिति प्राप्त होती है।
धर्म्यध्यान का अभ्यास करने वाले ध्याता को निम्न निर्दिष्ट विषयों का ज्ञान आवश्यक है
१. भावना २. देश ३. काल ४. आसन ५. आलंबन ६. क्रम ७. ध्येय विषय ८. ध्याता ६. अनुप्रेक्षा १०. लेश्या ११. लिंग और १२. फल।
झाणस्स भावणाओ देसं कालं तहाऽऽसणविसेसं। आलंबणं कमं झाइयव्वयं जे य झायारो।। तत्तोऽणुप्पेहाओ लेस्सा लिंगं फलं च नाऊणं। धम्मं झाइज्ज मुणी तग्गयजोगो तओ सुक्कं ।।
झाणज्झयणं २८,२६
२ जुलाई २००६