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रौद्रध्यान (५)
विषयसंरक्षणानुबंधी - रौद्रध्यान का चौथा प्रकार है । शब्द आदि विषयों के संरक्षण के लिए होने वाली लोभ की तीव्रता ।
अप्राप्त परिग्रह के लिए निरंतर तीव्र आकांक्षा और नष्ट परिग्रह के लिए निरंतर शोक । प्राप्त विषयों की सुरक्षा के लिए तनाव और विषयों के उपभोग में तीव्र अतृप्ति ।
तीव्र लोभ के कारण परिणामधारा निरन्तर तनावयुक्त रहती है। यह रौद्रध्यान नरकगति का मूल कारण है।
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रौद्रध्यानम् ।...
विषयपरिपालप्रयोजनं च भवति परिग्रहेष्वप्राप्तनष्टेषु काङ्क्षाशोकौ प्राप्तेषु रक्षणमुपभोगे चावितृप्ति ।... रौद्रध्यायिनः तीव्रसंक्लिष्टाः कापोतनीलकृष्णलेश्यास्तिस्रस्तदनुगमाच्च नरकगतिमूलमेतत् ।
तत्त्वार्थ भाष्यानुसारिणी पृ. २६७
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५ सितम्बर
२००६
२७४ Do
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