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रौद्रध्यान (४) स्तेयानुबंधी–रौद्रध्यान का तीसरा प्रकार है। जिसका अध्यवसाय तीव्र संक्लेशवाला होता है, जिसमें लोभ का संस्कार बहुत प्रबल होता है, जो पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता और जो दूसरे का धन लेने के लिए निरंतर सोचता रहता है, जिसका चित्त द्रव्य-हरण के उपायों की खोज करता रहता है, उस व्यक्ति का ध्यान रौद्रध्यान है।
स्तेयार्थं स्तेयप्रयोजनमधुनोच्यते। तीव्रसङ्क्लेशाध्यवसायस्य ध्यातुः प्रबलीभूतलोभप्रचाराहितसंस्कारस्य अपास्तपरलोकापेक्षस्य परस्वादित्सोरकुशलः स्मृतिसमन्वाहारः। द्रव्यहरणोपाय एव चेतसो निरोधः प्रणिधानमित्यर्थः।
तत्त्वार्थ भाष्यानुसारिणी पृ. २६७
४ सितम्बर २००६
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