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आर्तध्यान ( ४ )
निदान चिंतन आर्तध्यान का चौथा प्रकार है। वर्तमान जन्म मनुष्य लोक में, दूसरा जन्म स्वर्गलोक में और तीसरा जन्म पुनः मनुष्यलोक में । भावी दोनों जन्मों के लिए संकल्प करना 'मैं देवेन्द्र बनूं, चक्रवर्ती बनूं यह निदान चिंतन है। इससे साधना गौण हो जाती है और पद, पूजा, प्रतिष्ठा प्रमुख बन जाती है।
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देविंदचक्कवट्टित्तणाई गुणरिद्धिपत्थणमईयं । अहमं नियाणचिंतणमण्णाणाणुगयमच्चंतं ।।
झाणज्झयणं
२४ अगस्त २००६
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