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यथासंविभाग व्रत अणुव्रतों को स्वीकार करने वाला गृहस्थ अपने प्रासुक और एषणीय भोजन, वस्त्र आदि का (यथासंभव) संविभाग देकर संयमी व्यक्तियों के संयम जीवन में सहयोगी बनता है। __ वह यथासंविभाग व्रत की अनुपालना के लिए निम्न निर्दिष्ट अतिक्रमणों से बचता है
१. एषणीय वस्तु को सचित्त वस्तु के ऊपर रखना। २. एषणीय वस्तु को सचित्त वस्तु से ढकना। ३. काल का अतिक्रमण करना। ४. अपनी वस्तु को दूसरों की बताना। ५. मत्सर भाव से दान देना।
६. अप्रासुक और अनेषणीय वस्तु का दान देना, जैसे–साधु के निमित्त बनाकर, खरीदकर, समय को आगे-पीछे कर-आदि तरीकों से दान देना।
२१ अप्रैल २००६