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तन्मय ध्यान की सिद्धि
तन्मय ध्यान की सिद्धि होने पर साधक जिस कर्म का सामर्थ्य रखने वाला जो देव है, उस रूप में स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर तद्रूप बन जाता है, इस अवस्था में वह अपने कार्य को सिद्ध कर लेता है।
समरसीभाव की साधना होने पर आकर्षण, वशीकरण आदि कार्य सिद्ध हो जाते हैं।
किमत्र बहुनोक्तेन यद्यत्कर्म चिकीर्षति। तद्देवतामयो भूत्वा तत्तनिवर्तयत्ययम्।। आकर्षणं वशीकारः स्तम्भनं मोहनं द्रुतिः। निर्विषीकरणं शान्तिर्विद्वेषोचाट-निग्रहाः।। एवमादीनि कार्याणि दृश्यन्ते ध्यानवर्तिनाम् । ततः समरसीभाव-सफलत्वान्न विभ्रमः ।।
तत्त्वानुशासन २०६.२११,२१२
५ अगस्त २००६
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