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माध्यस्थ्य भावना
हमारा जगत् नानात्व का जगत् है। नानात्व है इसीलिए सबका चिंतन, भाव और आवेश समान नहीं होता, बहुत तारतम्य होता है। कुछ व्यक्ति हित की शिक्षा सुनकर सकारात्मक चिंतन करते हैं और कुछ व्यक्ति ठीक इससे विपरीत करते हैं। कुछ ऐसे हैं जो हित की बात सुन हित शिक्षा की बात को सहन ही नहीं करते। इस स्थिति में हित शिक्षा वाले के लिए हितकर है उपेक्षा का प्रयोग, माध्यस्थ्य का प्रयोग।
क्रूरकर्मसु निःशंकं, देवता-गुरु-निन्दिषु। आत्मशंसिषु योपेक्षा, तन्माध्यस्थ्यमुदीरितम् ।।
योगशास्त्र ४.१२१
१६ जून २००६