________________
आर्तध्यान ( १ )
आर्तध्यान के चार प्रकार हैं । उनमें पहला प्रकार है अनिष्ट के वियोग का चिंतन और पुनः उसका संयोग न हो इसका अनुस्मरण का चिंतन ।
शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श-ये मनोज्ञ और अमनोज्ञ दोनों प्रकार के होते हैं। अमनोज्ञ का संयोग होने पर उनके वियोग के विषय में चिंतन करते रहना तथा उनका वियोग हो जाने पर पुनः उनका संयोग न हो ऐसा अनुस्मरण करते रहना, यह अप्रीतिप्रधान चिंतन मन को पीड़ित करता रहता है।
GDC
अमणुणाणं सद्दाइविसयवत्थूण दोसमइलस्स । धणियं विओगचिंतणमसंपओगाणुसरणं च ॥
झाणज्झयणं ६
२१ अगस्त २००६
२५६