Book Title: Jain Yogki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati Prakashan

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Page 389
________________ महावीर के ध्यान के प्रयोग महावीर लम्बे समय तक कायिक- ध्यान करते । उससे श्रान्त होने पर वाचिक और मानसिक ध्यान करते । कभी द्रव्य का ध्यान करते, फिर उसे छोड़ पर्याय के ध्यान में लग जाते। कभी एक शब्द का ध्यान करते, फिर उसे छोड़ दूसरे शब्द के ध्यान में प्रवृत्त हो जाते। भगवान परिवर्तनयुक्त ध्येय वाले ध्यान का अभ्यास कर अपरिवर्तित ध्येय वाले ध्यान की कक्षा में आरूढ़ हो जाते थे। २८ दिसम्बर २००६ ३८८ 000 Jame

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