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तपोयोग : आहारशुद्धि
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तपोयोग की साधना का प्रथम सूत्र है- आहारशुद्धि । अधिक आहार से मल संचित होता है। जिसके शरीर में मल संचित होता है उसका नाड़ी - संस्थान शुद्ध नहीं रहता और मन भी निर्मल नहीं रहता। ज्ञान और क्रिया- इन दोनों की अभिव्यक्ति का माध्यम नाड़ी - संस्थान है । मल के संचित होने पर ज्ञान और क्रिया- दोनों में अवरोध उत्पन्न हो जाता है नाड़ी - संस्थान के कार्य में कोई अवरोध न हो, मन की निर्मलता बनी रहे, अपान वायु दूषित न हो - इन तथ्यों को ध्यान में रखकर साधक अपने आहार का चुनाव करता है। इन्हीं तथ्यों के आधार पर उपवास, मित भोजन और रसपरित्याग (गरिष्ठ भोजन का वर्जन) सुझाए गए हैं।
२७ अप्रैल
२००६
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