Book Title: Jain Yogki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati Prakashan

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Page 392
________________ एकरात्रिकी प्रतिमा पेढाल नाम का गांव और पोलाश नाम का चैत्य । वहां भगवान महावीर ने 'एकरात्रिकी प्रतिमा' की साधना की। प्रारंभ में तीन दिन उपवास किया। तीसरी रात को शरीर का व्युत्सर्ग कर खड़े हो गए। दोनों पैर सटे हुए थे और हाथ पैरों से सटकर नीचे की ओर झुके हुए थे । दृष्टि का उन्मेष - निमेष बंद था । उसे किसी एक पुद्गल (बिन्दु) पर स्थिर और सब इन्द्रियों को अपने-अपने गोलकों में स्थापित कर ध्यान में लीन हो गए। यह भय और देहाध्यास के विसर्जन की प्रकृष्ट साधना है। ३१ दिसम्बर २००६ ३६१

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