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कर्मयोग और ज्ञानयोग धर्म व्यापार के पांच लक्षण बतलाए गए हैं१. स्थान-आसन २. ऊर्ण-शब्द यानी क्रियाकाल में उच्चार्यमाण सूत्र पाठ ३. अर्थ-शब्द के अभिधेय का निश्चय ४. आलम्बन-मंत्रपदों का आलंबन ५. निर्विकल्प ध्यान–निरालंब ध्यान। इनमें स्थान और शब्द-ये दो कर्मयोग, अर्थ, आलंबन और निर्विकल्प ध्यान ये तीन ज्ञानयोग हैं।
ठाणुन्नत्थालंबणरहिओ, तंतम्मि पंचहा एसो।
दुगमित्थ कम्मजोगो, तहा तियं नाणजागो उ।। अत्र स्थानादिषु द्वयं स्थानोर्णलक्षणं कर्मयोग एव, स्थानस्य साक्षाद्, ऊर्णस्याप्युचार्यमाणस्यैव ग्रहणादुचारणांशे क्रियारूपत्वात् तथा त्रयं अर्थालम्बननिरालम्बनलक्षणं ज्ञानयोगः.....अर्थादीनां साक्षाद् ज्ञानरूपत्वात्।
योगविंशिका प्रकरण गा २, वृप ४३
३ अप्रैल २००६
9.२८.............--.१०-११६
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