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परमदर्शी
जो लोक में परम को देखता है वह विविक्त जीवन जीता है। वह उपशांत, सम्यक् प्रवृत्त, ज्ञान आदि से सहित और सदा अप्रमत्त होकर जीवन के अंतिम क्षण तक जागरूक रहता है।
लोयंसी परमदंसी विवित्तजीवी उवसंते, समिते सहिते सयाजए कालकंखी परिव्वए । आयारो ३.३८
२० दिसम्बर
२००६
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