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संकल्प-विकल्प का नाश
जितने प्रकार के शब्द आदि इन्द्रिय-विषय हैं, वे सब विरक्त मनुष्य के मन में मनोज्ञता या अमनोज्ञता उत्पन्न नहीं करते।
इस प्रकार जो समता को प्राप्त हो जाता है, उसके संकल्प और विकल्प नष्ट हो जाते हैं। जो अर्थों-इन्द्रिय-विषयों का संकल्प नहीं करता, उसके कामगुणों में होने वाली तृष्णा प्रक्षीण हो जाती है।
विरज्जमाणस्स य इंदियत्था, सद्दाइया तावइयप्पगारा। न तस्स सव्वे वि मणुण्णयं वा, निव्वत्तयंती अमणुण्णायं वा। एवं ससंकप्पविकप्पणासो, संजायई समयमुवट्ठियस्स। अत्थे असंकप्पयतो तओ से, पहीयए कामगुणेसु तण्हा।।
उत्तरज्झयणाणि ३२.१०६,१०७
६ नवम्बर २००६
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