Book Title: Jain Yogki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati Prakashan

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Page 391
________________ भावना का अभ्यास भगवान ध्यान की मध्यावधि में भावना का अभ्यास करते थे। उनके भाव्य विषय थे १. एकत्व अनुप्रेक्षा–जितने संपर्क हैं, वे सब सांयोगिक हैं। अंतिम सत्य यह है कि आत्मा अकेला है। २. अनित्य अनुप्रेक्षा–संयोग का अंत वियोग में होता है। अतः सब संयोग अनित्य हैं। ३. अशरण अनुप्रेक्षा अंतिम सचाई यह है कि व्यक्ति के अपने ही संस्कार उसे सुखी और दुःखी बनाते हैं। बुरे संस्कारों के प्रकट होने पर कोई भी उसे दुःखानुभूति से नहीं बचा सकता। ३० दिसम्बर २००६

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