Book Title: Digvijaya Mahakavya
Author(s): Meghvijay, Ambalal P Shah
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 28
________________ दिग्विजयमहाकाव्य- - प्रस्तावना । ५. सप्तसंधान महाकाव्य-रचना समय सं० १७६०. ' आ काव्य कर्तानी शक्ति माटे आश्चर्य उत्पन्न करावे तेवुं छे. केमके तेमां एक ज लोकमां सात पुरुषोनी कथा कहेवामां आवी छे. ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीरस्वामी, रामचंद्र अने कृष्णचंद्र-आ साते महापुरुषोनां जीवन चरित्र आ काव्यना प्रत्येक लोकमां वर्णित छे. ग्रन्थ प्रमाण ४४२ श्लोकनुं छे. ग्रंथकार स्वयं लखे छे के, "आचार्य हेमचंद्रसूरिनुं बनावेलं 'सप्तसंधानकाव्य' हतुं परंतु ते हवे मळतुं न होवाथी में आ नवुं बनाव्युं छे.' आ ग्रन्थ "जैन विविध साहित्य शास्त्रमाला "मां प्रगट थयेलो छे अने आचार्य श्री अमृतसूरिजीए तेना पर टीका बनावी हमणां ज सूरत थी प्रगट करेलो छे. ६. दिग्विजय महाकाव्य - प्रस्तुत महाकाव्य रचना समय आपेलो नथी. आमां श्रीविजयप्रभसूरिनुं जीवनचरित्र छे. तेर सर्गेनुं आ काव्य ग्रंथकारे बनावेलां काव्योमां सौथी मोटुं छे. ७. लघुत्रिषष्टिशला कापुरुषचरित्र - हेमचंद्राचार्ये रचेला 'त्रिपष्टिशलाका' ना दशे पर्वोने संक्षेपमां लगभग ५००० श्लोक प्रमाणमां पद्यरूपे आलेख्यो छे' तेमां रचनासमय जणाव्यो नथी. आ ग्रंथ मुद्रित थयो नथी. ८. भविष्यदत्तकथा - पंचमीमाहात्म्य उपर भविष्यदत्तनी कथा, श्रीविजयरत्नसूरि सं० १७५० मां गच्छपति बन्या पछी पद्यरूपे आलेखेली छे.' आ ग्रन्थ 'दानदद्यामृत हिम्मतग्रन्थमाला' मां प्रगट थयो छे. - ९. पञ्चाख्यान - पूर्णभद्रे रचेला मूळ पंचाख्यानने गद्यरूपे संस्कृतमां आलेखेलुं छे. आ ग्रन्थ मुद्रित थयो नथी. १०. विजयदेवमाहात्म्य विवरण - [ टीकाग्रंथ. ] रचना समय अज्ञात छे. परंतु आ ग्रंथनी लिपि सं० १७०९ मां थई छे, ' तेथी मालम पडे छे के मूल ग्रंथ एनी पहेलां बन्यो हशे अने विवरण मूळग्रंथनी साथे या पाउळ बन्युं हशे मूळ ग्रंथ बृहत्खरतरगच्छीय जिनराज सूरिसंतानीय श्रीज्ञानविमल शिष्य पाठक श्रीवल्लभ उपाध्याये बनाव्यो छे. तेमां मुख्य विषय श्रीविजयदेवसूरिना जीवननुं सविस्तर वर्णन छे. उपाध्याय मेघविजयजीए आ मूळ ग्रंथ पर विवरण कर्तुं छे. एटले कठिन शब्दोनो अर्थस्फोट कर्यो छे. आ ग्रन्थ 'जैनसाहित्य संशोधक समिति' तरफथी प्रगट थई चूक्यो छे. [ न्यायग्रंथ ] ११. युक्तिप्रबोध नाटक - ( वाणारसीय दिगम्बरमत-खण्डनमय ) आ ग्रन्थ मूल प्राकृत गाथामां १ " वियद्रसमुनीन्दूनां (१७६० ) प्रमाणात् परिवत्सरे । कृतोऽयमुद्यमः पूर्वाचार्यचर्याप्रतिष्ठितः” ॥ २ "श्री हेमचन्द्रसूरीशैः सप्तसंधानमादिमम् । रचितं तदलामे तु स्तादिदं तुष्टये सताम् ” ॥ ५ - सप्तसंधानमहाकाव्य, प्रान्तप्रशस्ति । ४ " तपागणाम्भोजसहसभानुः सूरिर्जयी श्रीविजय प्रभाहः । तत्पदीपः श्रमणावनीपः प्रभासते श्रीविजयादिरत्तः ॥ ७६ ॥ राज्ये तदीये विजयिन्यजखं प्राज्ञाः कृपादेर्विजया बभूवुः । शिष्यो हि मेघाद विजयस्तदीयो ऽन्व भूदुपाध्यायपदप्रतिष्ठाम् ॥ ७७ ॥ व्यरीरचद् धीरगभीरवाचा सुखावबोधाय कथाप्रबन्धम् । स वाचकः पञ्चमिका उपस्याफलेन भोक्तुं शिवरूपलक्ष्मीम् ॥ ७८ ॥ - सप्तसंधान महाकाव्य, प्रान्तप्रशस्ति । ३ "कृपा विजयनामकवीन्द्राः सान्द्रचान्द्रमहसो यशसा ते । तद्विनेयवाग् विनयाssढ्यो निर्ममे जिनपवित्र चारित्रम्" ॥६०३॥ - लघुत्रिषष्टिशला कापुरुषचरित्र, प्रान्तप्रशस्ति । Jain Education International - भविष्यदत्तचरित्र, प्रान्तप्रशस्ति । ५ " लिखितोऽयं ग्रन्थः पण्डितश्री ५ श्रीरङ्गसो मगणि-शिष्य मुनि सोमगणिना सं० १७०९ वर्षे चैत्रमासे कृष्णपक्षे एकादशी - तिथी बुधे लिखितं राजनगरे श्रीतपागच्छाधिराज भ० श्रीविजयदेवसूरीश्वर विजय ( यि) राज्ये” । - विजयदेवमाहात्म्य, प्रान्तपुष्पिका । For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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