Book Title: Digvijaya Mahakavya
Author(s): Meghvijay, Ambalal P Shah
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 29
________________ महोपाध्यायमेघविजयगणिकृत अने तेना पर स्वोपज्ञ संस्कृत टीका सहित रचेलो छे. तेमां तेमणे मुख्यतः बनारसीदासनी' एकान्ती निश्चयनयनी मान्यताने बनारसीमत'-अध्यात्ममत जणावी तेनुं आवेशपूर्वक खण्डन कयुं छे. आ मत सं० १६८० मां नीकल्यो एम जगाव्युं छे. 'द्रव्य क्रियाओ छे ते कष्टक्रियाओ छे माटे अध्यात्ममां लीन रहेवु' एवी ते मतनी मान्यतानुं अने दिगम्बरो श्वेताम्बरोथी ८४ बाबतोमा भिन्न पडे छे ते दिगम्बरमतनुं पण खण्डन कर्यु छे. आ ग्रन्थनुं प्रमाण ४३०० श्लोकनुं छे. आ ग्रन्थ श्रीविजयरत्नसूरिना राज्यमां सं० १७५० पछी बनावलो छे.' आ ग्रंथ रतलाम-ऋषभदेव-केशरीमलपेढी तरफथी प्रगट थयो छे. १२. धर्ममञ्जषा- आ ग्रन्थनो रचना समय मळी शक्यो नथी. तेमा ढुंढकोना मन्तव्योनुं खण्डन छे. आ ग्रंथ अमुद्रित छे, वडोदरा अने आगरामां तेनी प्रतिओ छे. [व्याकरणग्रंथ] १३. चन्द्रप्रभा (हैमकौमुदी)-रचना समय १७५७.५ आ ग्रंथ व्याकरणनो छे. श्रीहेमचंद्रसूरि रचित 'सिद्धहेमचन्द्रव्याकरण' ने कौमुदीना रूपमा मूकीने प्रस्तुत ग्रंथ बनाव्यो छे. आनी रचना आगरामां थई हती, जेनुं ग्रंथ परिमाण ८००० श्लोकनुं छे.' आ ग्रंथ कौमुदी माफक पोताना शिष्य भानुविजय माटे १ "सत्तरमी सदीमा बनारसीदास नामना श्रावक हिंदीभाषाना श्रेष्ठ जैन कवि थया. तेओ आगराना रहेवासी श्रीमाली वैश्य हता. तेमनो जन्म सं. १६४३ मा थयो हतो. तेमना पितानुं नाम खरगसेन हतुं. तेमने झवेरातनो वेपार हतो. बनारसीदास खरतर गच्छीय मुनि भानुचंद्र (मुनि अभयधर्म उपाध्यायना शिष्य) ना समागममा आवतां धार्मिक क्रियासूत्रो साथे छंद, अलंकार, कोश अने विविध विषयना केटलाक श्लोको कंठस्थ कर्या. तेओए पहेलो शंगार विषयनो ग्रंथ रच्यो हतो पण सं० १६८० मा तेमनुं भारे परिवर्तन थयु. आगरामा अर्थमल्लजी नामना एक अध्यात्मरसिक सजन साथे परिचय थतां श्रीरायमल्लकृत बालावबोध सहित दिगम्बराचार्य श्री कुंदकुंदकृत 'समयसारनाटक' मननपूर्वक वाचतां कविने सर्वत्र निश्चय नय ज सूझवा लाग्यो, तेमने व्यवहार नय परथी श्रद्धा ज ऊठी गई, तेथी तेमणे 'ज्ञानपचीशी', 'अध्यात्मबत्तीसी', 'ध्यानबत्तीसी', 'शिवमन्दिर' आदि केवल निश्चय नयने ज पोषती आध्यात्मिक कृतिओ रची. भगवान पर चढेलु नैवेद्य (निर्माल्य ) पण तेओ खाता. चंद्रभाण, उदयकरण, थानमलजी आदि मित्रोनी पण ए ज दशा हती. छेवटे तो तेओ चारे जण एक ओरहीमा नन बनी पोताने परिग्रह रहित (दिगंबर मुनि) मानीने फरता. तेथी श्रावको बनारसीदासने “खोसरामती" कहेवा लाग्या. आ एकान्त दशा सं० १६९२ सुधी रही." -जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ. ५७६-७८ २ "कवि बनारसीदासना अनुयायीओमाथी कुमारपाल अने अमरचंद आदि, जेओ पोताने आध्यात्मिको कहेवडावता हता, तेमनो श्वे. उपा० श्रीयशोविजयजीने आगरामां साक्षात् परिचय थयो अने ते मतनुं खंडन करवा तेमणे 'अध्यात्ममत खंडन' मूळ १८ श्लोक पर खोपज्ञवृत्ति साथे अने 'अध्यात्म मतपरीक्षा' नामे प्राकृतना ११८ श्लोको रची ते पर सविस्तर टीका पण रची". -जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ५७८ नुं टिप्पण, ३“चतुःसहस्रीश्लोकानां शतत्रयसमन्वितम् । प्रमाणमस्य ग्रन्थस्य निर्मितं तत्कृता खयम्" ॥१॥ ४ "तत्पट्टभूषा महसाऽतिपूषा सुवर्णनैर्मल्यविधानभूषा । विराजते श्रीविजयादिरनः प्रभुः प्रभाध्यापितदेवरत्नः ॥ ४ ॥ तेषां राज्ये मुदाऽकारि वाड्मयं युक्तिबोधनम् । मेघाद् विजयसंक्षेन वाचकेन तपखिना" ॥५॥ -युक्तिप्रबोधनाटक, प्रान्तप्रशस्ति । ५ "विजयन्ते ते गुरवः शैलशरर्षीन्दुवत्सरे (१७५७) तेषाम् । आदेशाद् देशपतेः स्थितिः कृता राजधान्यन्तः" ॥७॥ ६ "चातुर्मास्यामस्यां नाना श्रीआगरावराऽऽख्यायाम् । नानायोगैरुचितै रचिता चन्द्रप्रभा सुधिया ॥ ८॥ ७"खाने सष्टसहस्रलक्षणधरः क्लप्ताभिषेकः सुरैः सेन्द्रः साष्टसहस्रमानसहितैः कुम्भैश्च वृत्तैः स्तुतः। ग्रन्थेऽप्यष्टसहस्रसम्मिततया सल्लक्षणैलेक्षिते कुर्यात् सोऽभ्युदयं धियां समुदयं वीरस्त्रिलोकीगुरुः" ॥१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only wwww.jainelibrary.org

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