Book Title: Digvijaya Mahakavya
Author(s): Meghvijay, Ambalal P Shah
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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दिग्विजयमहाकाव्य-प्रस्तावना।
११
श्रीगुरुए चिंतवेलुं, इष्ट उपदेशथी निर्णीत करेलुं अने उपाध्याय श्रीकमळविजय गणिनी अनुज्ञापूर्वक आचार्यपद आपीने तेमनुं नाम श्रीविजयप्रभसूरि राख्यु. केमके विजयी, जगतने आराध्य, यशस्वी, प्रभावशाळी एवा भगवान, आद्य वर्णोथी 'श्रीविजयप्रभ' एबुं नाम जोडातुं होवाथी ए नाम पाडवामां आव्युं.
ते पछी गुरुए श्रीविजयप्रभसूरि साथे सूरत बंदरे ए चतुर्मास करी, राजनगरमां चतुर्मास कयु. संघमा मुख्य (नगरशेठ) शा. सूराना पुत्र शा. धनजीए गुरुने विज्ञप्ति करी वंदन महोत्सव शरू कर्यो. ए महोत्सवमां एकठा थयेला अनेक मनुष्योने रहेवा माटे मोटा मोटा पटमंडपो एवा बांधवामां आव्या हता के तेमा सूर्यना किरणनो संचार थई शके तेम नहोतो. अनेक प्रकारनां धवलगीतो सांभळवामां चित्रनी माफक एकाग्र थयेली मानवमेदनीथी सुशोभित मोटा पटमंडपमा मूकेला सिंहासन पर श्रीविजयप्रभसूरिने स्थापीने गुरु श्रीविजयदेवसूरिए पोतानी समान ज तेमने गणवा-गणाववा माटे आगळ ऊभा रही सारा मुहूर्तमा वंदन कयु. आ जोई लोकोए आनंद कलरव को. ते पछी सर्व संघ समक्ष परमगुरुए कह्यु, "जेवो हुँ छ तेवा आ छे माटे समग्र संघे तेमने उपासवा. संसारसागरमा प्रवास करता मानवीओने आ गुरु नौका समा होवाथी तेमने कदापि छोडवा नहि".
ते पछी श्रीविजयप्रभसूरि वंदन महोत्सवथी मणिनी माफक संस्कारशुद्ध थई अधिक तेज-प्रभावथी दीपवा लाग्या. ए समये शा. धनजीए अढार हजार महमूदिकानी प्रभावना करी अने सर्व संघनी परिधापनिका करी. ते पछी एक चतुर्मास अहम्मदपुरमां करीने गुरुनी साथे श्रीविजयप्रभसूरिए श्रीयुगादिदेव (शत्रंजयतीर्थ )नी यात्रा करीने दीवना रहेवासी भणशाली शा. रायचंद प्रमुख संघ साथे (गिरनार वगेरेनी) यात्रा करीने तेओ सौराष्ट्र-संघना आग्रहथी उन्नतपुर (ऊना) पधार्या.
सं० १७१३ नी अषाढ देवशायी एकादशीना दिवसे प्रातःकाळे श्रीविजयप्रभसूरिए निर्यामना विधि कर्या पछी श्रीविजयदेवसूरि स्वर्गे संचर्या. भगवान महावीरस्वामीना निर्वाणथी जे दुःख गौतम गणधरने थयुं हतुं तेवू श्रीविजयदेवसूरिना निर्वाणथी श्रीविजयप्रभसूरिने थयु. केटलाक दिवसो आ दुःखावेगमां वही गया.
जीवन-मरण ए संसारनो स्वभाव छे, एवं समजी शोक रहित थया त्यारे चतुर्विधसंघना आग्रहथी सं० १७१३ मां सारा मुहूर्ते श्रीविजयप्रभसूरिए भट्टारकपद लई गुरुनी पाटने अलंकृत करी. तेज दिवसभी शिवपुरी (सिरोही) प्रदेशमा यतिओना विहारनो बे वर्ष पहेलांथी ज निषेध थयेलो होवाथी त्यांनी वधामणी आवी. ते ज वर्षे दीवना रहेवासी शाह नेमिदासे आठ हजार महमूदिकाना व्ययथी गुरुने साथे लईने शत्रंजयतीर्थनो मोटो संघ काट्यो.
____ए प्रकारे गुरुए सौराष्ट्रमा दश चतुर्मासो कया. तेमना तपःप्रभावथी सं० १७१५-१७ अने २० ना वर्षोंमां पडेला त्रण दुष्काळो सौराष्ट्र देशमां प्रसार न पाम्या; केमके जीर्णदुर्ग (जूनागढ) अने गुजरातमा धान्य आव्या ज करतुं. सं० १७२३ ना वर्षे घोघा बंदरे जसू नामनी श्राविकाए भरावेली अनेक जिनप्रतिमाओनी श्रीसूरिए प्रतिष्ठा करी. गुरुनु माहात्म्य जोई विपक्षीओ तिरस्कार पामता शरमावा लाग्या अने गुरुनो महिमा वधवा लाग्यो.
आम भट्टारक बन्या पछी गच्छनो भार वहन करतां उपदेश-प्रभावना उपरांत संघ साथेनी यात्राओ, बिंब प्रतिष्ठाओ योग-उपधान वहन वगेरे धर्म कार्यो अने महोत्सवो कर्या. सोरठ, कच्छ, हालार, मरुधर, मेवात, मालव अने दक्षिणनो जैन संघ तेमनी आज्ञामा हतो. तेमणे आबू, सुवर्णगिरि, श@जय, गिरनार, शंखेश्वर, वाराणसी अने समेतशिखर सुधीनां तीर्थ स्थळोनी यात्रा करी त्यांना धर्मस्थानोनी तेमज संघनी व्यवस्था
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