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जायेगा। बेचारा बेईमानी भी करे, बेईमानी की तकलीफ भी भोगे, बेईमानी का नरक भी झेले और बड़ा मकान भी न बना पाये। तम ईमानदारी का भी मजा लो और बड़े मकान का भी दोनों हाथ लड़। एक हाथ उसको भी लेने दो। वह काफी तकलीफ झेल रहा है। और जितनी तकलीफ झेल रहा है उतना उसको मिल नहीं रहा है, इतना मैं तुमसे कहे देता हूं। जो मिल रहा है वह कूड़ा-कर्कट है; तकलीफ वह बहुत बड़ी झेल रहा है; आत्मा बेच रहा है और कचरा इकट्ठा कर रहा है।
लेकिन तुम्हारी नजर भी कचरे पर लगी है। तुम कहते हो, 'देखो, उसके पास कचरे का कितना ढेर लग गया है। हमारे पास बिलकुल नहीं है। यहां कोई कचरा डालता ही नहीं है! हम बैठे रहते हैं सड़क के किनारे, यहां कोई कचरा डालता नहीं। बेईमानों के पास लोग कचरा डाल रहे हैं।'
नहीं, तुम्हारी नजर खराब है। तुम बेईमान हो। और कायर हो! तुम बेईमानी की हिम्मत भी नहीं करना चाहते और तुम, बेईमान को जो मिलता है बेईमानी से, वह भी पाना चाहते हो। तुम बिना दौड़े प्रतियोगिता में प्रथम आना चाहते हो। तुम कहते होः 'देखो, हम तो बैठे हैं, फिर भी प्रथम नहीं आ रहे। और ये लोग दौड़ रहे हैं और प्रथम आ रहे हैं!' तो जो दौड़ेंगे, वे प्रथम आयेंगे, लेकिन दौड़ने की तकलीफ, दौड़ने की परेशानी, दौड़ने का पसीना, जद्दोजहद-वे झेलते हैं। तुम बैठे-बैठे प्रथम आना चाहते हो। तुम चाहते हो कि परमात्मा कोई चमत्कार करे। क्यों? क्योंकि तुमने रिश्वत नहीं ली है। ___रिश्वत लेना पाप हो, न लेना कोई पुण्य नहीं है। चोरी करना पाप हो, न करना कोई पुण्य नहीं है। इसको खयाल में रखो। इतने से कुछ नहीं होगा कि तुमने चोरी नहीं की। चोरी नहीं की तो ठीक है, तुम चोरी करने की तकलीफ से बच गये। और चोरी करने की तकलीफ से जो थोड़े-बहुत सुख का प्रलोभन मिलता है, आशा बंधती है, उससे भी तुम बच गये। तुम झंझट के बाहर रहे। बस इतना क्या कम है ? इतना फल क्या थोड़ा है ? ___ मैं जब तुमसे कहता हूं जागो, तो मेरा मतलब यह है कि तुम जीवन की सारी स्थिति को आंख भर कर देखो। फिर उस देखने से ही क्रांति घटनी शुरू होती है। तुम देखते हो कि जो व्यर्थ है वह दुख देता है। अभी देता है, यहीं देता है, तत्क्षण देता है। धीरे-धीरे उस दुख से तुम्हारा छुटकारा होने लगता है। और जब तुम्हारे जीवन के सारे दुख खो जाते हैं तो सुख का सितार बजता है। सुख का सितार तो तुम्हारे भीतर बज ही रहा है। ये जो दुख के नगाड़े तुम बजा रहे हो, इनकी वजह से सितार सुनाई नहीं पड़ता; उसकी आवाज धीमी, बारीक है। सूक्ष्म रस तो बह ही रहा है, लेकिन तुम्हारे आसपास दुख के इतने परनाले बह रहे हैं, ऐसी बाढ़ आई है दुख की, कि वह जो रस की क्षीण धार है उसका पता नहीं चलता। वह जो एक किरण है परमात्मा की तुम्हारे भीतर, तुम्हारे कृत्य के अंधकार में खो गई है; तुम्हारे अहंकार की अंधेरी रात में दब गई है।
तुम जरा जागो तो तुम्हारे जीवन में क्रांति अपने-आप आ जायेगी। रिश्तेदार न छोड़ने पड़ेंगे और न नौकरी से भागना पड़ेगा। यह तो मैं पहली बात कहता हूं। लेकिन मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम्हारे जीवन में रूपांतरण न होगा। हो सकता है, साक्षी-भाव में जागने पर ऐसी स्थिति आ जाये कि तुम्हारा सारा प्राणपण से जंगल जाने का भाव उठे। वह भगोड़ापन नहीं है फिर।
मैं कहता हूं : सब भगोड़े जंगल पहुंच जाते हैं, लेकिन सब जंगल पहुंचने वाले भगोड़े नहीं हैं। कभी-कभी तो कोई सहज स्वभाव से जंगल जाता है। एक सहज आकांक्षा, कोई भगोड़ापन नहीं है।
| खुदी को मिटा, खुदा देखते हैं
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