Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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प्रथमाध्याय:
छाया- अथ किं तत् श्रुतनिःसृतम् ? चतुर्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-अवग्रह :
ईहा अवायः धारणा। भाषा टीका-वह श्रुत निःसृत क्या है ? वह चार प्रकार का कहा गया हैअवग्रह, ईहा, अवाय, और धारणा ।
संगति—यहां इन चारों का ज्ञान होने की अपेक्षा से मतिज्ञान को श्रुतनिःसृत अर्थात् सुन कर निकला हुआ अथवा शास्त्र सुन कर जाना हुआ माना गया है। "बहुबहुविधक्षिप्रानिःसृतानुक्तध्रुवाणां सेतराणाम्”। ___छव्विहा उग्गहमती पण्णत्ता, तं जहा-खिप्पमोगिरहति बहुमोगिण्हति बहुविधमोगिण्हतिधुवमोगिएहति अणिस्सियमोगिण्हइ असंदिद्धमोगिण्हइ । छव्विहा ईहामती पण्णत्ता, तं जहाखिप्पमोहति बहुमीहति जाव असंदिद्धमीहति । छविधा अवायमतो पण्णत्ता, तं जहा-खिप्पमवेति जाव असंदिद्धं अवेति। छविधा धारणा पण्णता, तं जहा-बहुं धारेइ पोराणं धारेति दुद्धरं धारेति अणिस्सितं धारेति असंदिद्धं धारेति ।
" स्थानांग स्थान ६, सूत्र ५१० जं बहु बहुविह खिप्पा अणिस्सिय निच्छिय धुवे यर विभिन्ना, पुणरोग्गहादओ तो तं छत्तीसत्तिसयभेदं ।।
इयि भासयारेण, छाया- षड्विधा अवग्रहमतिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा-क्षिप्रमवगृह्णाति बहुमव
गृह्णाति बहुविधमवगृह्णाति ध्रुवमवगृह्णाति अनिःसृतमवगृह्णाति असंदिग्धमवगृह्णाति । षड्विधा ईहामतिः प्रज्ञप्ता,तद्यथा-क्षिप्रमीहति बहुमीहति यावदसंदिग्धमीहति । षड्विधा अवायमतिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा-क्षिप्रमवैति यावदसंदिग्धमवैति । षड्विधा धारणा प्रज्ञप्ता,