Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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नवमोऽध्याय:
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१,२२.
भाषा टीका-आभ्यन्तर तप भी छै प्रकार के कहे गये हैं:- प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग। नवचतुर्दशपंचद्विभेदा यथाक्रमं प्राग्ध्यानात् ।
१,२१. भाषा टीका - उन आभ्यन्तर तपों के ध्यान से पूर्व २ क्रमशः नौ, चार, दश, पांच और दो भेद हैं।
आलोचनाप्रतिक्रमणतदुभयविवेकव्युत्सर्गतपश्छेदपरिहारोपस्थापनाः।
णवविधे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा-आलोअणारिहे पडिकम्मणारिहे तदुभयारिहे विवेगारिहे विउसग्गारिहे तवारिहे छेदा. रिहे मूलारिहे अणवठ्ठप्पारिहे।
स्थानांग स्थान ९, सू० ६८८. छाया- नवविधः प्रायश्चित्तः, प्रज्ञप्तः, तद्यथा-आलोचनाई, प्रतिक्रमणाई,
तदुभयाई, विवेकाह, व्युत्संगाह, तपसह, छेदाई, मूलाई,
(परिहारार्ह ) अनवस्थापनाई। भाषा टीका- प्रायश्चित नौ प्रकार का कहा गया है:- आलोचनायोग्य, प्रतिक्रमण योग्य, तदुभय योग्य, विवेक योग्य, व्युत्सर्ग योग्य, तप योग्य, छेद योग्य, मूल योग्य, (परिहार योग्य ) और अनवस्था अथवा उपस्थापना योग्य। संगति - यहां तक मागम और सूत्र के शब्द प्रायः मिलते हैं। ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः।
१,२३. विणए सतविहे पण्णते, तं जहा-णाणविणए दंसणविणए