Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तृतीयाध्याय:
[ ७५
जंबूदीवाइया दीवा लवणादीया समुद्दा संठाणतो एकविहविधाणा वित्थारतो अणेगविधविधाणा दुगुणा दुगुणे पडुप्पारमाणा पवित्थरमाणा ओभासमाणवीचीया ।
जीवाभिगम प्रतिपत्ति ३, उ०२, सू० १२३. छाया-- जम्बूद्वीपः नाम द्वीपः लवणो नाम समुद्रः वृत्तः वलयाकारसंस्थानसंस्थितः सर्ववः समन्ततः संपरिक्षिप्य तिष्ठति ।
जम्बूद्वीपादयो द्वीपा लबणादिकाः समुद्राः संस्थानतः एकविध - विधानाः विस्तारत: अनेकविध विधानाः द्विगुणद्विगुणं प्रत्युत्पद्य - मानाः प्रविस्तरन्तः अवभासमानवीचयः ।
भाषा टीका - जम्बूद्वीप नाम का द्वीप है और लवण समुद्र नाम का समुद्र है । वह गोल वस्तय के आकार में स्थित है और जम्बूद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए है।
जम्बूद्वीप आदि द्वीपों और लवण आदि समुद्रों का रचना की अपेक्षा एक ही भेद है, किन्तु विस्तार से अनेक प्रकार के भेद हैं। यह दुगने २ उत्पन्न होते हुए विस्तार को प्राप्त होते हुए शोभित होते हैं ।
संगति – सारांश यह है कि सब द्वीपों का विस्तार पहिले २ से दुगना २ है और बह गोल आकृति को धारण करते हुए पूर्व २ को घेरे हुए हैं।
तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजनशतसहस्रविष्कम्भो जम्बुद्वीपः ।
३, ९.
जंबुद्दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए सव्वखुड्डाए वहे . एगं जोयणसहस्सं आयामविक्खंभेणं इत्यादि ।
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सू० ३. जंबुद्दीवस्य बहुमज्झदेसभाए एत्थ जम्बुदीवे मन्दरे णाम्मं