Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्त्वार्थ सूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
संगति - इन सभी आगम वाक्यों और सूत्रों के अक्षर प्राय: मिलते हैं ।
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' निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् । "
२. १७.
भंते! इंदियउवाच पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे
कएविहे इंदियउवच पण ।
कवि णं भंते! इन्दियणिवत्तणा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा इन्दियशिवत्तणा पण्णत्ता ।
प्रज्ञापना उ० २ पद १५.
छाया - कतिविधः भदन्त ! इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः १ गौतम ! पंचविधः इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः ।
कतिविधा भदन्त ! इन्द्रियनिर्वतना प्रज्ञप्ता ? गौतम! पञ्चविधा इन्द्रियनिर्वतना प्रज्ञप्ता ।
प्रश्न
• भगवन् ! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर
- गौतम ! इन्द्रियोपचय पांच प्रकार का कहा गया है।
प्रश्न --
- भगवन् ! इन्द्रिय निर्वतना कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर - गौतम ! इन्द्रिय निर्वतना पांच प्रकार की कही गई है। संगति
- सूत्र में द्रव्येन्द्रियों के दो भेद माने हैं - निर्वृति और उपकरण । श्रागम वाक्य में उपकरण को ही इन्द्रियोपचय कहा गया है।
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लब्ध्युपयोगो भावेन्द्रियम् ।
२, १८.
कतिविहा गां भंते ! इन्दियलद्धी पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच
विहा इन्दियलद्वी पण्णत्ता ।
प्रज्ञापना उ० २, इन्द्रियपद १५. कतिविहा गं भंते! इन्दिय उवउगद्धा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा इन्दियउवगद्धा पण्णत्ता ।
प्रज्ञापना उ० २. इन्दियपद १५.