Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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प्रथमाध्यायः
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“एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्व्यः।”
- १. ३०. जे णाणी ते अत्थेगतिया दुणाणी अत्थेगतिया तिणाणी, अत्यंगतिया चउणाणी अत्यंगतिया एगणाणी । जे दुणाणी ते नियमा आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी य, जे तिणाणी ते
आभिणिबोहियणाणी सुतणाणी ओहिणाणी य, अहवा आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी मणपज्जवणाणी य, जे चउणाणी ते नियमा आभिणिबोहियणाणी सुतणाणी ओहिणाणी मणपजवणाणी य, जे एगणाणी ते नियमा केवलणाणी।
जीवाभि० प्रतिपत्ति १ सूत्र ४१. छाया- ये ज्ञानिन : ते सन्त्येककाः द्विज्ञानिन: सन्त्येककाः त्रिज्ञानिन :
सन्त्येककाः चतु निन: सन्त्येकका : एकज्ञानिनः । ये विज्ञानिन: ते नियमात् आभिनिबोधिकज्ञानी श्रुतज्ञानी च, ये त्रिज्ञानिनस्ते
आभिनिबोधिकज्ञानी श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी च, अथवा आभिनिबोधिकज्ञानी श्रुतज्ञानी मन:पर्ययज्ञानी च, ये चतुर्सानिनस्ते नियमात् प्राभिनिबोधिकज्ञानी श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी मनःपर्ययज्ञानी
च, ये एकज्ञानिनस्ते नियमात् केवलज्ञानी। भाषा टीका- ज्ञानियों में किन्हीं के दो ज्ञान होते हैं, किन्हीं के तीन ज्ञान होते हैं, किन्हीं के चार ज्ञान होते हैं और किन्हों के केवल एक ज्ञान ही होता है। दो ज्ञान वालों के मति और श्रुति होते हैं। तीन ज्ञान वालों के मति, श्रुति और अवधि होते हैं अथवा मति, श्रुति और मनःपर्यय ज्ञान होते हैं । चार ज्ञान वालों के मति, अति, अवधि और मनःपर्यय ज्ञान होते हैं। एक ज्ञान वालों के केवल ज्ञान ही होता है।
संगति-एक आत्मा में एक समय कम से कम एक और अधिक से अधिक चार ज्ञान तक हो सकते हैं। पांचों कभी एक आत्मा में एक साथ नहीं हो सकते ।