Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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स्वार्थसूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय :
छाया
अनन्ताः समयाः ।
भाषा टीका - कालद्रव्य में अनन्त समय होते हैं।
द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ।
व्वस्सिया गुणा ।
छाया---
k, ४१.
उत्तराभ्ययन अध्ययन २६, गाथा ६.
छाया -
द्रव्याश्रयाः गुणाः ।
भाषा टीका – गुण द्रव्य के आश्रय होते हैं [ और स्वयं निर्गुण होते हैं ] । तद्भावः परिणामः ।
५, ४२.
दुविहे परिणामे पण्णत्ते, तं जहा- जोवपरिणामे य अजोवपरिणामे य ।
द्विविधः परिणामः प्रज्ञप्तः, परिणामश्च ।
प्रज्ञापना परिणाम पद १३ सू० १८१. तद्यथा - जीवपरिणामश्च अजीव
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परिणामो र्थान्तरगमनं न च सर्वथा व्यवस्थानम् । न च सर्वथा विनाशः परिणामस्तद्विदामिष्टः ॥
इति वृत्तिकार. भाषा टीका - परिणाम दो प्रकार का होता है - जीव परिणाम और अजीब परिणाम |
वृत्तिकार ने कहा है कि एक अर्थ से दूसरे अर्थ में प्राप्त होने को परिणाम कहते हैं । सब प्रकार से दूसरा रूप भी नहीं हो जाता और न सब प्रकार से प्रथम रूप नष्ट ही होता है, उसे परिणाम कहते हैं ।
संगति – इन सूत्रों का आगमवाक्यों के साथ साम्य स्पष्ट है ।
इति श्री जैन मुनि - उपाध्याय - श्रीमदात्माराम महाराज - संगृहीते तस्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वये
* पञ्चमोऽध्यायः समाप्तः ॥ ५ ॥
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