Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय :
प्रश्न - शुभ नाम कर्म का शरीर किस प्रकार प्राप्त होता है ?
उत्तर - हे गौतम! काय की सरलता से, मन की सरलता से, वचन की सरलता से तथा अन्यथा प्रवृत्ति न करने से शुभ नाम कर्म के शरीर का प्रयोग बंध होता है । प्रश्न - अशुभनाम कर्म के शरीर का प्रयोग बंध किस प्रकार होता है ?
उत्तर - इसके विपरीत काय, मन तथा वचन की कुटिलता से तथा अन्यथा प्रवृत्ति करने से अशुभ नाम कर्म के शरीर का प्रयोग बंध होता है।
दर्शनविशुद्धिर्विनयसम्पन्नता शीलव्रतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी साधुसमाधिर्वैयावृत्यकरणमर्हदाचार्य बहुश्रुतप्रवचनभक्तिरावश्यकापरिहाणिर्मार्गप्रभावना प्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थकरत्वस्य ।
६, २४.
अरहंत-सिद्ध-पवयण - गुरु - थेर - बहुस्सुए तवस्सीसुं । वच्छलया य तेसिं अभिक्ख णाणोवोगे य ॥ १ ॥ दंसण विए आवास्सए य सीलव्वए निरइयारं । खणलव तव च्चियाए वेयावच्चे समाही य ॥ २ ॥ अप्पुव्वणाणगहणे सुयभत्ती पवयणे पभावण्या | एएहिं कारणेहिं तित्थयरत्तं लहइ जीवो ॥ ३ ॥
ज्ञाताधर्म कथांग अ० ८, सु० ६४.
अर्हत्सिद्धमवचनगुरुस्थविरबहुश्रुततपस्विवत्सलताऽभीक्ष्णं ज्ञानो
छाया
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पयोगश्च ॥ १ ॥
दर्शनं विनय आवश्यकानि च शीलवतं निरतिचारं । क्षरणलवस्तपः त्यागः वैयावृत्यं समाधिश्च ॥ २ ॥