Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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द्वितीयाध्यायः
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बाहिरगे चेब, अभंतरए कम्मए बाहिरए वेउव्विए, एवं देवाणं ।
स्थानांग स्थान २, उद्देश्य १ सूत्र ७५. छाया- नारकाणां वे शरीरके प्रज्ञप्ते, तद्यथा - आभ्यन्तरं चैव बाह्यौं चैव,
आभ्यन्तरं कर्मकं बाह्य वैक्रियिकं, एवं देवानाम् । भाषा टीका - नारकियों के दो शरीर कहे गये हैं-आभ्यन्तर और बाह्य । भाभ्यन्तर शरीर कार्मण होता है । और बाह्य वैक्रियिक होता है। इसी प्रकार देवों के भी होता है। लब्धिप्रत्ययञ्च ।
२,४७. वेउव्वियलद्धीए।
. औपपातिकम् सूत्र ४०. छाया- क्रियिकलब्धिकम् । भाषा टीका-वैक्रियिक शरीर ऋद्धि के द्वारा भी प्राप्त होता है।
तैजसमपि। तिहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे संखित्तषिउलतेउलेस्से भवति, तं जहा-भायावणताते १ खंतिखमाते २ अपाणगेणं तवो कम्मेणं ३ ।
स्थानांग स्थान ३ उद्देश्य ३ सूत्र १८२. छाया- त्रिभिः स्थानः श्रमणः निर्ग्रन्थः संक्षिप्तविपुलतेजोलेश्यः भवति -
तयथा, भातापनतया, शान्तिक्षमया, अपानकेन तपःकर्मणा। भाषा टीका-तीन स्थानों से श्रमण निर्ग्रन्थ संक्षेप की हुई अधिक तेज लेश्या वाले होते हैं - धूप में तपने से, शान्ति और क्षमा से और जल बिना पिये हुए तप करके।
संगति- इन आगमवाक्यों में सूत्रों से केवल कुछ शब्दों का ही भेद है।
२, ४८.