Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
View full book text
________________
द्वितीयाऽध्यायः "औपशमिकक्षायिको भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च ॥”
अध्याय २. सूत्र १. छविधे भावे पण्णत्ते, तं जहा-ओदइए उपसमिते खत्तिते खतोवसमिते पारिणामिते सन्निवाइए।
स्थानांग स्थान ६, सूत्र ५३७. छाया- षड्विधः भावः प्रशप्तस्तद्यथा-औदयिका, औपशमिकः, क्षायिकः,
___ क्षायोपशमिकः, पारिणामिकः, सन्निपातिकः ॥ भाषा टीका-भाव छै प्रकार के होते हैं - औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सन्निपातिक।
संगति - सूत्र में पांच भाव होते हुए भी आगम में छै भाव विशेष कथन की अपेक्षा से हैं। “द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम्”॥
“सम्यक्त्वचारित्रे ॥” "ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च ॥" "ज्ञानाज्ञानदर्शनलब्धयश्चतुस्त्रित्रिपञ्चभेदाः
सम्यक्त्वचारित्रसंयमाऽसंयमाश्च ॥”
२.
३.