Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्त्वार्थ सूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
मानी गई है। उत्कृष्ट आयु के समान जघन्य आयु का भेद स्वयं लगा लेना चाहिये । किन्तु यह आयु का अन्तर मतान्तर है। इसके अतिरिक्त आयु का विषय तात्विक विषय भी नहीं है कि उसका भेद वास्तविक भेद समझा जावे ।
नारकाणां च द्वितीयादिषु ।
दशवर्षसहस्राणि प्रथमायां ।
४, ३५.
४, ३६.
सागरोवममेगं तु, उक्कोसेा वियाहिया । पढमाए जहन्नेणं, दसवास सहस्सिया ।। १६० ।। तिण्णेव सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । दोच्चाए जहन्ने, एगं तु सागरोवमं ।। १६१ ।।
उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ३६ ।
एवं जा जा पुव्वस्स उक्कोसटिई अत्थि ता ता परमो
परओ जहण्याठिई अष्वा ।
छाया
सागरोपममेकं तु, उत्कर्षेण व्याख्याता । प्रथमायां जघन्येन, दशवर्षसहस्रिका ॥ १६० ॥ त्रीण्येव सागरोपमाणि तु, उत्कर्षेण व्याख्याता । द्वितीयायां जघन्येन, एकं तु सागरोपमम् ।। १६१ ।।
एवं या या पूर्वस्य उत्कृष्टस्थितिरस्ति सा सा परतः परतः जघन्यस्थितिः ज्ञातव्या ।
भाषा टीका - प्रथम नरक भूमि की जघन्य आयु दश सहस्र वर्ष की होती है। और उत्कृष्ट आयु एक सागर होती है ॥ १६० ॥
दूसरे नरक की जघन्य आयु एक सागर होती है और उत्कृष्ट आयु तीन सागर होती है ॥ १६९ ॥