Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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चतुर्थाध्यायः
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इसी प्रकार जो पहिले २ की उत्कृष्ट स्थिति है वह बाद २ वाले की जघन्य स्थिति है ॥ १६१॥ संगति-इन सूत्रों में और आगम वाक्य में कोई भी अन्तर नहीं है।
भवनेषु च।
४, ३७. भोमेजाणं जहणणेणं दसवाससहस्सिया ।
___ उत्तरा० अध्यन ३६ गाथा २१७. छाया- भौमेयानां जघन्येन दसवर्षसहस्रिका । भाषा टीका-भवनवासी देवों की भी जघन्य आयु दश सहस्र वर्ष होती है। व्यन्तराणाञ्च।
४, ३८. परा पल्योपमधिकम् ।
४, ३६. वाणमंतराणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं पलिमोवमं ।
प्रज्ञापना० स्थितिपद ४. छाया- व्यन्तराणां भगवन् देवानां कियती स्थितिः प्रकप्ता ? गौतम !
जघन्येन दशवर्षसहस्रिका उत्कर्षेण पल्योपमा। प्रश्न-भगवन् व्यन्तरों की भायु कितनी होती है ? उत्तर-जघन्य दशसहस्र वर्ष और उत्कृष्ट एक पल्य। ज्योतिष्काणाञ्च ।
४,४०. तदष्टभागोऽपरा।
४, ४१.