Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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सप्तमोऽध्यायः
[ ११
उपा० अध्या
मोहरिए संजुत्ताहिगरणे उपभोगपरिभोगाइरित्ते।। छाया- अनर्थदण्डवेरमणस्स श्रमणोपासकेन पश्चातिचाराः ज्ञातव्याः, न
समाचरितव्याः, तद्यथा-कन्दर्पः, कौत्कुच्यः मौखर्य, संयुक्ताधि
करणम् उपभोगपरिभोगातिरिक्तः । भाषा टीका- अनर्थदण्ड विरति व्रत के श्रमणोपासक को पांच अतिचार जानने चाहियें । किन्तु उन पर आचरण नहीं करना चाहिये । वह यह हैं__ कन्दर्प-स्वभाव की उत्कटता से हास्य मिश्रित भण्ड वचन बोलना।
कौत्कुच्य-हास्य मिश्रित भएड वचन बोलना तथा शरीर से भी निन्दनीय क्रिया करना।
मौखर्य - बहुत निरर्थक प्रलाप करना ।
संयुक्ताधिकरण -बिना विचारे आवश्यकता से अधिक हिंस्र सामग्री एकत्रित करना।
उपभोग परिभागोतिरिक्त-भोग उपभोग के जिन पदार्थों से अपना काम चल जाता है उनसे अधिक संग्रह करना । योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ।
७, ३३. सामाइयस्स पंच अइयारा समणोवासएणं जाणियव्वा । न समारियव्वा, तं जहा-मणदुप्पणिहाणे, वएदुप्पणिहाणे, कायदुप्पणिहाणे, सामाइयस्स सति अकरणयाए, सामाइयस्स अणबढियस्स करणया।
उपा० अभ्या३
छाया- सामायिकस्य पश्चातिचाराः श्रमणोपासकेन बातव्याः, न समा
चरितव्याः, तद्यथा - मन दुष्पणिधानं, वचःदुष्पणिधानं, कायदुष्पणिधानं, सामायिकस्य स्मृत्यकरणता, सामायिकस्यानवस्थितस्य करणवा ।