Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
View full book text
________________
१९६ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः - सातावेदणिजस्य...."जहन्नणं बारसमुहुत्ता ।
प्रज्ञापना पद २३, उ०२ सु० २६३. छाया- सातावेदनीयस्य जयन्येन द्वादशमुई ताः । भाषा टीका - साता वेदनीय की जघन्य आयु बारह मुहुर्त होती है। नामगोत्रयोरष्टौ ।
१६. जसोकित्तिनामाएणं पुच्छा ? गोयमा ! जहरणेणं अट्ठमुहुत्ता। उच्चगोयस्स पुच्छा ? गोयमा! जहरणेणं अट्ठमुहुत्ता ।
प्रज्ञापना पद २३, उ० २, सूत्र २६४. छाया- यशःकीर्तिनाम्नः पृच्छा ? गौतम ! जघन्येनाष्टमुहुर्ताः ।
उच्चगोत्रस्य पृच्छा ? गौतम! जयन्येनाष्टमुहुर्ताः ॥ भाषा टीका-हे गौतम ! यशकीर्ति नाम कर्म को जघन्य आयु आठ मुहुर्त होती है, मौर हे गौतम ! उच्च गोत्र कर्म को जघन्य आयु भी आठ मुहुर्त होती है। शेषाणामन्तर्मुहुर्ताः।
८,२०. अन्तोमुहुत्तं जहनिया।
उत्तराध्ययन अ० २३, गाथा १६ से २२ तक. छाया- अन्तर्मुहुर्त जघन्यका । भाषा टीका-शेष कर्मों की जघन्य आयु अन्तर्मुहुर्त होती है । संगति - इन सभी सूत्रों के शब्द और श्रागम वाक्य प्रायः एकसे ही हैं। इस प्रकार स्थिति बन्ध का वर्णन किया गया। अब अनुभागबन्ध का वर्णन किया जाता है - विपाकोऽनुभवः ।
८,२१.