Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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है किन्तु देखता नहीं । काल की अपेक्षा मतिज्ञान वाला आदेश से सभी काल को जानता है किन्तु देखता नहीं । भाव की अपेक्षा मतिज्ञान वाला आदेश से सब भावों को जानता है, किन्तु देखता नहीं ।
प्रथमाध्याय:
श्रुतज्ञान संक्षेप से चार प्रकार से होता है - द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भावसे । द्रव्य की अपेक्षा उपयोग युक्त श्रुतज्ञानी सब द्रव्यों को जानता और देखता है । क्षेत्र की अपेक्षा उपयोग युक्त श्रुतज्ञानी सब क्षेत्र को जानता और देखता है । काल की अपेक्षा उपयोग युक्त श्रुतज्ञानी सब काल को जानता और देखता है । भाव की अपेक्षा उपयोग युक्त श्रुतज्ञानी सब भावों को जानता और
देखता है ।
संगति - आगम में उसी बात को विस्तार से कहा गया है, जिसको सूत्र में संक्षेप से कहा है । सूत्र कहता है कि मति तथा श्रुत ज्ञान के विषयों का निबन्ध द्रव्य की थोड़ी पर्यायों में है, अर्थात् मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञान जानते तो सब द्रव्यों को हैं किन्तु उनकी सब पर्यायों को नहीं जानते, वरन् थोड़ी पर्यायों को जानते हैं ।
“ रूपिष्ववधेः ।
छाया
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१.२७.
ओहिनाणी जहन्ने अांताई रूविदव्वाइं जाणइ पासइ । उक्कोसेणं सव्वाई रूविदवाई जाणइ पासइ ।
नन्दिसूत्र सूत्र १६
अवधिज्ञानी जघन्येन अनन्तानि रूपिद्रव्याणि जानाति पश्यति । उत्कर्षेण सर्वाणि रूपिद्रव्याणि जानाति पश्यति ।
भाषा टीका – अवधिज्ञानी जघन्य रूप से अनन्त रूपी द्रव्यों को जानता और देखता है । उत्कृष्ट रूप से वह सभी रूपी द्रव्यों को जानता और देखता है ।
संगति – अवधिज्ञान केवल रूपी द्रव्य को ही जानता है, अरूपी द्रव्यों को नहीं जान सकता। रूपी द्रव्यों में अवधिज्ञान अधिक से अधिक परमाणु तक को जान तथा देख सकता है।