Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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छाया -
षष्ठोध्याय :
वैमानिकाः अपि यदि सम्यग्दृष्टिपर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्ककर्मभूमिकगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्यः उत्पद्यन्ते किं संयतसम्यग्दृष्टिभ्यो Sसंयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकेभ्यः संयतासंयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्केभ्यः उत्पद्यन्ते ? गौतम ! त्रिभिः उत्पद्यन्ते, एवं याव - दच्युतः कल्पः
प्रश्न- यदि वैमानिक देवों में सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक, संख्यात वर्ष की आयु वाले, कर्मभूमि, गर्भज मनुष्य उत्पन्न हों तो क्या संयत सम्यग्दृष्टियों से, असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकों से, संयतासंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्ष की आयुवालों में से उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! तीनों ही में से अच्युत स्वर्ग तक उत्पन्न होते हैं।
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संगति- इस कथन से प्रगट होता है कि सम्यग्दृष्टि देवलोक में जा सकता है।
योगवक्रता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः ।
६, २२.
छाया
तद्विपरीतं शुभस्य
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६, २३.
सुभनामकम्मा सरीरपुच्छा ? गोयमा ! कायउज्जुययाए भावुज्जुययाए भासुज्जुययाए अविसंवादणजोगेणं सुभनामकम्मा सरीरजावप्पयोगबन्धे, असुभनामकम्मा सरीरपुच्छा ? गोयमा ! काय रज्जुययाए जाव विसंवायणा जोगेणं असुभनामकम्मा जाव पयोगबंधे ।
व्याख्या० श० ८ उद्देο Ε शुभनामकर्माणि शरीरपृच्छा? गौतत ! कायर्जुकतया भावर्जुकतया भाषर्जुकतया श्रविसंवादनयोगेन शुभनामकर्माणि शरीरयावत्प्रयोगबंधः । अशुभनामकर्माणि शरीरपृच्छा ? गौतम ! कायानर्जुकतया यावत् विसवादनयोगेन अशुभनामकर्माणि यावत् प्रयोगबन्धः ।