Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्वार्थसूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय :
२.
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सचित्तप्रबद्धाहार – सचित्त वस्तु से स्पर्श हुए पदार्थों का आहार करना । ३. अपक्वाहार - अग्नि से न पकाये हुये तथा औषधि आदि मिश्र पदार्थों का
खाना ।
४. दुपक्वाहार - भलोप्रकार न पके अथवा देर से परिपक्व होने वाले पदार्थों का भोजन करना ।
५. तुच्छौषधिभक्षणता - ऐसे पदार्थ को खाना जिसके खाने से हिंसा विशेष होती हो किन्तु उदर पूर्ति न हो सके ।
सचितनिक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यका
लातिक्रमाः ।
७, ३६.
महासंविभागस्स पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा तं जहा - सचित्तनिक्खेवण या सचित्तपेहरा. या कालाइकमदाणे परोव एसे मच्छरया ।
उपा० अध्या० १
अतिथिसंविभागस्य पञ्चातिचाराः ज्ञातव्याः, न समाचरितव्याः, तद्यथा - सचित्त निक्षेपणता, सचित्तपिधानता, कालातिक्रमदानं, परव्यपदेशः, मत्सरता ।
भाषा टीका - अतिथि संविभाग व्रत के पांच अतिचार जानने चाहियें। किन्तु उन पर ध्याचरण नहीं करना चाहिये । वह यह हैं
१. सचित्त निक्षेपणता – न देने की बुद्धि से जल अन्न अथवा वनस्पति यदि में वित्त आहार रखना ।
२. सचित्तपिधानता
छाया
सचित्र कमलपत्र आदि से ढक कर आहार को रखना । ३. कालातिक्रमदान - दान देने के काल को उल्लघन करके अकाल में विनती करना । अथवा बीते हुए समय वाली वस्तु का दान करना ।
४. परव्यपदेश - न देने को बुद्धि से साधु को अन्य की वस्तु बतला देनी अथवा अन्य की वस्तु का उसकी बिना आज्ञा दान करना ।