Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
तया तीव्रमायातया तीव्रलोभतया तीव्रदर्शनमोहनीयतया तीव्र - चारित्रमोहनीयतया
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प्रश्न - [ चारित्र ] मोहनीय कर्म के शरीर का प्रयोगबन्ध किस प्रकार होता है ? उत्तर - गौतम ! तीव्र क्रोध करने से, तीव्र मान करने से, तीव्र माया करने से, ती लोभ करने से, तीव्र दर्शन मोहनीय से और तीव्र चारित्र मोहनीय से ।
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वक्तारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः ।
६. १५.
चउहिं ठाणेहिं जीवा रतियत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहामहारम्भता महापरिग्गहयाते पंचिदियवहेणं कुणिमाहारेणं ।
स्थानांग० स्थान ४ उ० ४ सूत्र ३७३.
छाया - चतुर्भिः स्थानैः जीवा नैरयिकत्वाय कर्म प्रकुर्वन्ति ।
तद्यथा - महारम्भतया, महापरिग्रहतया, पञ्चेन्द्रियवधेन, कुरण पाहारेण । भाषा टीका - जीव चार प्रकार से नरक आयु का बन्ध करते हैं :- बहुत आरम्भ करने से, बहुत परिग्रह करने से, पंचेन्द्रिय जीव के बध से, और ( मृतक ) मांस का हार करने से ।
संगति – यहां सूत्र की अपेक्षा विशेष कथन किया गया है।
माया तैर्यग्योनस्य ।
६, १६.
हिं ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणियत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा - माइल्लता ते णियडिल्लता ते अलियवयणेणं कूडतुल कूडमाणेणं ।
स्थानांग स्थान ४ उद्देश्य ४ सूत्र ३७३.
छाया
चतुर्भिः स्थानैः जीवाः तिर्यग्योनिकत्वाय कर्म प्रकुर्वन्ति । तद्यथामायितया, निकृतिमत्तया अलीकवचनेन कूटतुला कूटमानेन ।
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भाषा टीका - चार प्रकार से जीव तिर्यञ्च आयु का बन्ध करते हैं - छल कपट से, छल को छल द्वारा छिपाने से, असत्य भाषण से और कमती तोलने और नापने से ।