Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तृतीयाध्यायः
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द्वाविशतिः सागरोपमाणि तु, उत्कर्षेण व्याख्याता । षष्टयां जघन्येन, सप्तदश सागरोपमाणि ॥ १६५ ॥ त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि तु, उत्कर्षेण व्याख्याता।
सप्तम्यां जघन्येन, द्वाविंशतिः सागरोपमाणि ॥ १६६ ॥ भाषा टीका-प्रथम नरक की जघन्य स्थिति दश सहस्र वर्ष तथा उत्कृष्ट आयु एक सागर है ॥ १६० ॥ द्वितीय नरक की जघन्य आयु एक सागर तथा उत्कृष्ट आयु तीन सागर है ॥१६१ ।। तीसरे नरक की जघन्य आयु तीन सागर तथा उत्कृष्ट आयु सात सागर है ॥ १६२ ॥ चौथे नरक की जघन्य आयु सात सागर तथा उत्कृष्ट आयु दश सागर है ॥ १६३ ॥ पञ्चम नरक की जघन्य आयु दश सागर तथा उत्कृष्ट आयु सतरह सागर है ॥ १६४ ॥ छटे नरक की जघन्य भायु सतरह सागर तथा उत्कृष्ट आयु बाईस सागर है ॥ १६५ ॥ सातवें नरक की जघन्य प्रायु बाईस सागर है तथा उत्कृष्ट आयु तेंतीस सागर है ।। १६६ ॥
संगति - इस प्रकार नरकों के वर्णन में सूत्र और आगम वाक्यों में संक्षेप विस्तार के अतिरिक्त और कुछ भेद नहीं है।
जम्बूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ।
असंखेजा जंबुद्दीवा नामधेज्जेहिं पण्णता, केवतिया णं भंते ! लवणसमुद्दा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा लवणसमुद्दा नामधेज्जेहिं पण्णत्ता, एवं धायतिसंडावि, एवं जाव असंखेज्जा सूरदीवा नामधेज्जेहि य । एगे देवे दीवे पएणते एगे देवोदे समुद्दे पएणत्ते, एवं णागे जक्खे भूते जाव एगे सयंभूरमणे दीवे एगे सयंभूरमणसमुद्दे णामधेज्जेणं पण्णत्ते ।
जीवाभिगम प्रतिपत्ति ३, उ० २, सू० १८६ द्वीपसमुद्राधिकार.