Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
जावतिया लोगे सुभा णामा सुभा वण्णा जाव सुभा फासा एवतिया दीवसमुद्दा नामधेज्जेहिं पण्णत्ता ।
जीवाभिगम प्रतिपत्ति ३, उ० २ सू० १८९. छाया - असंख्येयाः जम्बूद्वीपाः नाम्ना प्रज्ञप्ताः । कियन्तो भगवन् ! लवणसमुद्राः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! असंख्येयाः लवणसमुद्राः नामधेयैः प्रज्ञप्ताः, एवं धातकीषण्डाः अपि एवं यावत् असंख्येयाः सूर्यद्वीपाः नामधेयै च । एकदेवद्वीपः प्रज्ञप्तः, एकः देवोदधिसमुद्रः प्रज्ञप्तः, एवं नागः यक्षः भूतः यावत् एकः स्वयम्भूरमरणः द्वीपः एकः स्वयम्भूरमणसमुद्रः नाम्ना प्रज्ञप्तः ।
यावन्ति लोके शुभानि नामानि शुभा वर्णाः यावत् शुभाः स्पर्शाः एतावन्तो द्वीपसमुद्राः नामधेयैः प्रज्ञप्ताः ।
भाषा टीका - जम्बूद्वीप नाम के असंख्यात द्वीप कहे गये हैं ।
प्रश्न – भगवन् ! लवण समुद्र कितने हैं ?
उत्तर -
- लवणसमुद्र नाम के असंख्यात द्वीप कहे गये हैं । इसी प्रकार धातकीखण्ड नाम के असंख्यात द्वीप कहे गये हैं। इसी प्रकार सूर्यद्वीप तक असंख्यात नाम वाले हैं। देवद्वीप नाम का एक ही द्वीप है। देवोदधि समुद्र भी एक ही है। इसी प्रकार नाग, यत, और भूत से लगाकर स्वयंभूर मया द्वीप तक एक २ ही हैं। स्वयंभूरमण नाम का भी एक ही है।
समुद्र
लोक में जितने भी शुभ नाम और शुभ वर्ण से लगाकर शुभ स्पर्श तक हैं उतने ही द्वीप और समुद्र कहे गये हैं ।
द्विद्विर्विष्कम्भाःपूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो
वलयाकृतयः ।
३, ८.
जंबूदीवं खाम दीवं लवणे णामं समुद्दे वहे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खत्ता गं चिट्ठति ।
जीवाभिगम प्रतिपत्ति ३ ४० २ ० १५४.