Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari
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तत्त्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वय :
कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जति ? गोयमा! एगसमइएण वा दिसमइएण वा तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववजन्ति ।
व्याख्याप्रज्ञप्ति शतक ३४ उ० १ सू० ८५१. छाया- नेरइकानां उत्कृष्टेन त्रिसमयेन विग्रहेण उत्पद्यन्ते एकेन्द्रियवयं
यावत् वैमानिकानाम् । कतिसमयेन विग्रहेण उत्पद्यन्ते ? गौतम ! एकसमयेन वा द्विसमयेन
वा त्रिसमयेन वा चतुःसमयेन वा विग्रहेण उत्पद्यन्ते । भाषा टीका- नारकी लोग अधिक से अधिक तीन समय विग्रह गति में लेकर उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न – विग्रह गति में कितना समय लेकर उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - गौतम ! एक समय, दो समय, तीन समय अथवा चार समय में मोड़ा लेकर उत्पन्न होते हैं।
__संगति – सूत्र और आगम वाक्य में बात एक ही कही है, केवल कहने का ढंग मिन्न है। 'एकसमयाऽविग्रहा॥'
२, २९. एगसमइयो विग्गहो नत्थि ।
व्याख्याप्रज्ञप्ति शत० ३४, सू० ८५१. छाया- एक समयकः विग्रहो नास्ति । भाषा टीका - एक समय वाले को मोड़ा लेना नहीं पड़ता।
संगति-सिद्ध एक समय में ही मोक्ष जाते हैं । अतः उनकी गति सीधी होती है और सस गति में मोड़ा नहीं होता। 'एकं द्वौ त्रीन्वाऽनाहारकः ॥'
२,३०.